यह कहानी है उस रात की, जब दिल्ली की हवाओं में तलवारों की झनझनाहट और इतिहास बदलने की आहट थी।
दिल्ली पर कहर
28 मार्च 1739 की रात, दिल्ली के लोग चैन की नींद सो रहे थे, लेकिन शहर की दीवारों के बाहर नादिर शाह अपनी सेना के साथ घात लगाए बैठा था। उसने मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला की कमजोरी को भांप लिया था।
जैसे ही सूरज डूबा, वैसे ही एक हलचल शुरू हुई। दिल्ली के दरवाजे अचानक ही तेज आवाज के साथ खुले और हजारों घुड़सवार सैनिक किले की ओर बढ़ने लगे। तलवारों की चमक और घोड़ों की टापों से पूरा शहर गूंज उठा। मुगल सैनिकों ने मुकाबला किया, लेकिन जल्द ही वे हारने लगे।
सुबह होते-होते नादिर शाह दिल्ली का स्वामी बन चुका था।
स्वर्ण सिंहासन की खोज
दिल्ली पर कब्ज़ा जमाने के बाद, नादिर शाह का असली उद्देश्य सामने आया ‘तख्त-ए-ताउस’। यह सिंहासन सिर्फ एक राजगद्दी नहीं, बल्कि शक्ति और शान का प्रतीक था। कहा जाता था कि इस पर बैठने वाला पूरी दुनिया पर शासन कर सकता है।
दरबार में प्रवेश करते ही नादिर शाह की नजर उस सिंहासन पर पड़ी, जिसे देखने के बाद उसके चेहरे पर क्रूर मुस्कान फैल गई। वह जानता था कि अब उसका नाम भी इतिहास में अमर हो जाएगा।
लेकिन समस्या यह थी कि यह सिंहासन आसानी से हटाया नहीं जा सकता था। यह एक मजबूत पत्थर के मंच पर टिका था और इसे उखाड़ने के लिए समय चाहिए था।
दिल्ली में कत्लेआम
नादिर शाह ने दिल्ली के अमीरों और बादशाह से स्वर्ण सिंहासन सौंपने को कहा, लेकिन जब उसे लगा कि चीजें उसकी उम्मीद से धीमी हो रही हैं, तो उसने वह किया जिसे आज भी इतिहास एक काले अध्याय के रूप में याद करता है दिल्ली का कत्लेआम।
लाल किले से नादिर शाह ने आदेश दिया:
"जिस गली में मुगलों की वफादारी मिले, उसे जलाकर राख कर दो!"
हजारों निर्दोष लोगों को काट डाला गया। घर जलाए गए, बाजारों में लूट मच गई और दिल्ली एक श्मशान में बदल गई।
स्वर्ण सिंहासन का अंत
आखिरकार, तख्त-ए-ताउस को निकाल लिया गया और उसे नादिर शाह के लूटे गए खजाने के साथ ईरान भेज दिया गया। यह वही खजाना था, जिसमें प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा भी शामिल था।
लेकिन कहते हैं, यह सिंहासन ज्यादा समय तक नादिर शाह के पास नहीं रहा। कुछ वर्षों बाद, नादिर शाह की हत्या हो गई और उसके खजाने के साथ-साथ यह सिंहासन भी टुकड़ों में बंट गया।
आज भी इतिहासकारों के अनुसार, इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं कि यह सिंहासन कहां गया। कुछ कहते हैं कि यह फारस में बंट गया, तो कुछ मानते हैं कि इसे तोड़कर अलग-अलग हिस्सों में कर दिया गया।
इतिहास से मिली सीख
1. सत्ता हमेशा स्थायी नहीं होती: मुगलों का वैभव दिल्ली में था, लेकिन कमजोर नेतृत्व ने इसे खत्म कर दिया।
2. लालच का अंत हमेशा बुरा होता है: नादिर शाह ने जिस क्रूरता से दिल्ली को लूटा, अंततः वही क्रूरता उसके अपने अंत का कारण बनी।
3. इतिहास हमेशा खुद को दोहराता है: जब-जब कोई शासक अपनी शक्ति का दुरुपयोग करता है, तब-तब उसका पतन निश्चित होता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. तख्त-ए-ताउस इतना खास क्यों था?
यह सोने से बना एक राजसिंहासन था, जिसमें कोहिनूर समेत कई बहुमूल्य रत्न जड़े थे। यह मुगलों की शक्ति और शान का प्रतीक था।
2. नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला क्यों किया?
दिल्ली की कमजोरी और अपार धन-संपदा को देखकर नादिर शाह ने इसे जीतने का फैसला किया।
3. क्या तख्त-ए-ताउस आज भी मौजूद है?
ऐसा माना जाता है कि इसे तोड़ दिया गया था और इसके हिस्से अलग-अलग शासकों के पास चले गए।
4. कोहिनूर हीरा नादिर शाह के पास कैसे पहुंचा?
दिल्ली लूटने के दौरान नादिर शाह ने इसे मुगल खजाने से छीन लिया था। बाद में यह अंग्रेजों के हाथ लगा और अब यह ब्रिटिश क्राउन ज्वेल्स में शामिल है।
5. नादिर शाह का क्या हश्र हुआ?
अपनी ही सेना के एक गुट ने उसकी हत्या कर दी और उसका विशाल साम्राज्य बिखर गया।
निष्कर्ष
इतिहास सिर्फ घटनाओं का सिलसिला नहीं, बल्कि सीख देने वाली कहानियों का संग्रह है। स्वर्ण सिंहासन का रहस्य हमें यह सिखाता है कि सत्ता, शक्ति और धन का लालच अंततः विनाश की ओर ही ले जाता है। जो दिल्ली कभी सोने की चिड़िया थी, वह एक रात में राख बन गई।
आज भी दिल्ली के पुराने किले और गलियों में अगर आप ध्यान से सुनें, तो शायद इतिहास की गूंज अब भी कानों में पड़ती हो एक ऐसी गूंज, जो हमें अतीत से सबक लेने को कहती है।